कहते हैं कि किसी की निजी डायरी पढ़ना अच्छी बात नहीं होती है पर क्या करूं प्रतिज्ञा तेरी डायरी को पढ ने के बाद रहा नहीं गया। दिल को छू लेने वाली कुछ बेहद निजी भावनाएं तेरी डायरी से चुरा रही हूं, मुझे माफ कर देना
जिंदगी भी कितनी अजीब है, हर पल एक नई कहानी गढती रहती है। कदम-कदम पर हमें कुछ ऐसा देखने को मिलता है जो हमें आश्चर्य में भरने के लिए काफी होता है। अगर हमें किसी भी चीज की चाह होती है, तो वो कभी मिलती नहीं, और जो मिलती है उसकी चाह नहीं होती। पूरी जिंदगी यो कट जाती है मानों कुछ जिया ही न हो। जीना तो सभी चाहते हैं पर किस मोल पर, सपनों, आशाओं और उम्मीदों के मोल पर जिंदगी किस काम की?
कुछ ऐसी ही जिंदगी है मेरी भी, मैं भी यूं ही जी रही हूं। फीके पड े सपने और धुंधली पडी चाहतों के साथ। आखिर कौन है इसका जिम्मेदार, मैं खुद नहीं समझ पाती हूं। मेरे घर वालों को लगता है कि यह सब मेरी नादानी है, पागलपन है, आखिर क्या कमी है मेरी जिंदगी में? सब कुछ तो है मेरे पास एक प्यार करने वाला, सच्चा और मेरे सुख-दुख का खयाल रखने वाला जीवन साथी, जो मुझ पर अटूट विश्वाश करता है। मेरी हर बात का ध्यान रखता है, हर गलती को आसानी से माफ कर देता है। किसी भी लडकी को और क्या चाहिए? कोई पागल ही होगी जो इसके अलावा कुछ और मांगेगी।
मुझे भी लगता है कि सच है कि सब कुछ तो है मेरे पास, क्या कमी है। चाहूं तो बेहिचक शांति से जिंदगी गुजार सकती हूं। सबके अनुसार कहें तो खुशहाल जिंदगी। फिर ऐसा क्या है जो मुझे कहीं न कहीं कसक देता रहता है। कई बार सबको खुश करने के लिए खूब खिलखिलाकर हंसती हूं, किसी ने सच ही कहा है कि जरूरी नहीं कि हर हंसी को ख़ुशी नहीं समझना चाहिए। बचपन किसे कहते हैं?, मुझे कभी पता ही नहीं चला। कैसे कोई बच्चा जिद करता है और उसके मां-बाप उसकी हर ख़ुशी को पूरा करने के लिए अपनी जान लगा देते हैं, इसका अनुभव करने का कोई मौका ही नहीं मिला। पापा का तो खैर कभी समझ ही नहीं पायी क्योंकि उनसे हमेशा मेरा छत्तीस का आंकड़ा रहता था पर मम्मी के बारे में पता चला क्योंकि कई बार उन्होंने मेरा पक्ष लिया, मेरी जिंदगी बनाने की कोशिश की। हां उनका तरीका काफी सखत था। आज भी वो मेरा भला ही चाहती हैं पर काश ! उन्होंने मुझे समझा भी होता। मेरी हमेशा यही कोशिश रही कि मेरी वजह से उन्हें कोई तकलीफ न पहुंचे लेकिन इसके लिए मुझे बहुत कीमत चुकानी पड़ी , मेरी पूरी जिंदगी अब इसकी भरपाई करने में जाएगी।
मुझे लगता है कि लड कियों की जिंदगी ही कुछ ऐसी होती है। बीसवी सदी में सब आगे बढ गए हैं। महिलाओं की स्थिति में भी सुधार होने की न जाने कितनी कहानियां सुनाई जा रही हैं। इसके बावजूद ऐसा लगता तो नहीं है कि कोई खास अंतर आया हो।
जिंदगी भी कितनी अजीब है, हर पल एक नई कहानी गढती रहती है। कदम-कदम पर हमें कुछ ऐसा देखने को मिलता है जो हमें आश्चर्य में भरने के लिए काफी होता है। अगर हमें किसी भी चीज की चाह होती है, तो वो कभी मिलती नहीं, और जो मिलती है उसकी चाह नहीं होती। पूरी जिंदगी यो कट जाती है मानों कुछ जिया ही न हो। जीना तो सभी चाहते हैं पर किस मोल पर, सपनों, आशाओं और उम्मीदों के मोल पर जिंदगी किस काम की?
कुछ ऐसी ही जिंदगी है मेरी भी, मैं भी यूं ही जी रही हूं। फीके पड े सपने और धुंधली पडी चाहतों के साथ। आखिर कौन है इसका जिम्मेदार, मैं खुद नहीं समझ पाती हूं। मेरे घर वालों को लगता है कि यह सब मेरी नादानी है, पागलपन है, आखिर क्या कमी है मेरी जिंदगी में? सब कुछ तो है मेरे पास एक प्यार करने वाला, सच्चा और मेरे सुख-दुख का खयाल रखने वाला जीवन साथी, जो मुझ पर अटूट विश्वाश करता है। मेरी हर बात का ध्यान रखता है, हर गलती को आसानी से माफ कर देता है। किसी भी लडकी को और क्या चाहिए? कोई पागल ही होगी जो इसके अलावा कुछ और मांगेगी।
मुझे भी लगता है कि सच है कि सब कुछ तो है मेरे पास, क्या कमी है। चाहूं तो बेहिचक शांति से जिंदगी गुजार सकती हूं। सबके अनुसार कहें तो खुशहाल जिंदगी। फिर ऐसा क्या है जो मुझे कहीं न कहीं कसक देता रहता है। कई बार सबको खुश करने के लिए खूब खिलखिलाकर हंसती हूं, किसी ने सच ही कहा है कि जरूरी नहीं कि हर हंसी को ख़ुशी नहीं समझना चाहिए। बचपन किसे कहते हैं?, मुझे कभी पता ही नहीं चला। कैसे कोई बच्चा जिद करता है और उसके मां-बाप उसकी हर ख़ुशी को पूरा करने के लिए अपनी जान लगा देते हैं, इसका अनुभव करने का कोई मौका ही नहीं मिला। पापा का तो खैर कभी समझ ही नहीं पायी क्योंकि उनसे हमेशा मेरा छत्तीस का आंकड़ा रहता था पर मम्मी के बारे में पता चला क्योंकि कई बार उन्होंने मेरा पक्ष लिया, मेरी जिंदगी बनाने की कोशिश की। हां उनका तरीका काफी सखत था। आज भी वो मेरा भला ही चाहती हैं पर काश ! उन्होंने मुझे समझा भी होता। मेरी हमेशा यही कोशिश रही कि मेरी वजह से उन्हें कोई तकलीफ न पहुंचे लेकिन इसके लिए मुझे बहुत कीमत चुकानी पड़ी , मेरी पूरी जिंदगी अब इसकी भरपाई करने में जाएगी।
मुझे लगता है कि लड कियों की जिंदगी ही कुछ ऐसी होती है। बीसवी सदी में सब आगे बढ गए हैं। महिलाओं की स्थिति में भी सुधार होने की न जाने कितनी कहानियां सुनाई जा रही हैं। इसके बावजूद ऐसा लगता तो नहीं है कि कोई खास अंतर आया हो।
शायद प्रतिज्ञा एक काल्पनिक पात्र है पर डायरी प्रायः सभी लड़कियों की है। और आगे अगर चाहत का राजकुमार मिल भी जाए तो कोई गारंटी नहीं कि डायरी का अगला हिस्सा ऐसा नहीं होगी। हर कोई लड़की से अपनी खुशी के लिए बलिदान मांगता है। मां भी शायद किसी और की भाषा ही दोहरा रही हैं।
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