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जनवरी, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रामदास पाध्ये- बोलती गुड़ियों के जादूगर

दो जिस्म एक जान' का मुहावरा तो सभी ने सुना होगा पर 'दो जिस्म एक आवाज' को सार्थक करते है भारत के मशहूर वेन्ट्रिक्विलिस्ट रामदास पाध्ये। रामदास पाध्ये और उनकी टीम द्वारा तैयार की गई 'बोलती गुड़ियों' ने उन्हे आम लोगों के बीच खास पहचान दी। लिज्जात पापड़ के 'कर्रम-कुर्रम बनी' और फिल्म दिल है तुम्हारा के 'रंगीला' को भला कौन भूल सकता है? पिछले चार दशकों के दौरान वे देश-विदेश में अनगिनत शो कर चुके है। उनसे मेरे ई-मेल इंटरव्यू के कुछ अंश- सबसे पहला सवाल जिसमें सभी पाठकों की उत्सुकता होगी, वेन्ट्रिक्विलिज्म क्या है? यह एक ऐसी कला है जिसमें कलाकार किसी गुड़िया या पपेट को अपनी आवाज देता है, पर दर्शकों को भ्रम होता है कि गुड़िया खुद बोल रही है। इसे 'शब्दभ्रम' या बोलती गुड़िया का खेल भी कहा जाता है। आपने यह कॅरियर ही क्यों चुना? मेरे पिता वाई. के. पाध्ये भारत के मशहूर वेन्ट्रिक्विलिस्ट और जादूगर थे। मैजिक शो में उनके साथ रहने के दौरान मेरा रुझान इस कला की ओर हुआ। बचपन में पिताजी की पपेट को देखकर सोचा करता था कि वे केवल पिताजी से ही बात क्यों करती है? एक दि

खुला आकाश

उम्मीदों के पार, एक सुंदर जहाँ है। जहा सदा बसती है, शान्ति और समरधि, नही वहां नही मिलता, पैसा और यश। वहां तो बस , और खुशी है। वहां मुक्ति मिल जाती है, दुनियावी बातो से। वहां नही है कोई तमाशा, हँसी और आंसुओ का। वहा है जोश और उत्साह, आत्मनियंत्रण और सादगी। vilakchanta और soundrya, dhyan, karm और prakash। काश मिल जाए कोई , ऐसा खुला आकाश । और पहुच जाए हम उम्मीदों के पार ।