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थोड़ी रौशनी दे दो

अपने शहर कानपुर से दूर आ चुकी हूँ , दोस्तों का साथ, अपनों का साथ हर कुछ छोड़कर एक बार फिर से नई शुरुआत करनी है , चाहती हूँ सबका साथ और शुभकामनाये ----------------------- अभी असाम कि खूबसूरत वादियों से लिख रही हूँ............................. आज एक छोटी सी उम्मीद है कि थोड़ी सी धूप दे दो, कि उजाला हो जाए, मिटटी के सही, दिए जला दो, कि तम भी दूर हो जाये, इन बिजली के बल्बों कि, रौशनी भी बड़ी अजीब है, आंखे चुधियाती है, वर्नान्धता हो सकती है , रंगों से बेअसर नजरे, दिखाओगे किसको भला, इनको जरूरत है रौशनी की, जो बनावटी न हो , ताकि भविष्य के लिए, हम अंधे न हो, हमारी नजर बचने को, हमारी आत्मा बचाने को, थोड़ी धूप दे दो, दीपक कि ही सही, थोड़ी रौशनी दे दो .