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जून, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दफ्तर में कंडोलसेंस पर

खुदा भी जिसे जरूरत होती है उससे मुंह मोड़ लेता है और जरूरत न होने पर हर तरफ से बरसात करता रहता है, ऐसा ही होता है जब किसी अधिकारी स्तर के व्यक्ति की मौत पर तो पूरा ऑफिस का अमला अपना एक-एक दिन का वेतन कटवाने को तैयार हो जाता है और अगर कोई निचले स्तर का कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना का शिकार हो जाए तो कोई पूंछने वाला भी नहीं होता .............. सादर, श्रद्घेय समर्पित जन, तुम चले गए उस पार, तुम्हारी मौत का कष्टï है, हमें तो है बहुत ही अपार, मेरी श्रद्घा सुमन तुम्हे है, संवेदनाएं भी साथ हैं, तुममें और मुझमें भले ही, फर्क हो राजा भोज-गंगू तेली का, पर साथी हम एक ही फर्म के, तुम्हारे जाने के बाद, भले ही हम परिचित न हों, कंडोलसेंस देना नैतिक फर्ज है, पर एक सवाल है, जो बार बार कचोटता है, कि क्या जब कोई छोटा, साथी भी जाएगा उस बार, उस पल भी सबके दिलों में, बहेगी सहानुभूति की बयार, तब भी क्या मेल चलेगी, और कटेगा एक दिन का वेतन, मुझे नहीं लगता ऐसा, क्योंकि पिछले ही दिनों, एक साथी ने खाया था जहर, यही नहीं कई और भी गए, पर उन्हें नहीं मिली सहानुभूति, तुम होते तो पूंछती, क्या यह है सही?

तेरा ही नशा है

पैमाना भर दो कि, मुझके नशे में होना है, होश न रहे बाकी कि, जीना है कि मरना है, नशे में डूब के जरा, देख लूं मैं भी, साकी करम कर दो कि, इसी तरह जीना है, हाल इतना बुरा बने, दुनियादारी का रहे न होश, दुनियावी बातों से अब तो, बाहर मुझे निकलना है, जो कोई रोके तो, दरवाजा बंद कर लो, तुझ पर ही आसरा हूं, हरसत ये पूरी कर दो बड़ी मस्त जिंदगी अब , लगने लगी है देखो, सच है बड़ा जोशीला समां, तेरे नशे में आके देखो, जाम ये शराब नहीं, तेरे साथ का है नशा, इसे नशे में खोकर, मैं क्या से क्या हुई भला।

प्यार बार बार होता है

कौन कहता है कि प्यार, सिर्फ एक बार होता है। ये तो इक एहसास है जो, बार-बार होता है। इसके लिए कोई सरहद कैसी, ये तो बेख्तियार होता है, कब कौन कैसे, भला लगने लगे, खुद अपना अख्तियार, कहां होता है? प्यार में शर्त बंधी हो जो, तो भला ये प्यार कहां होता है। शर्तो में बंधने वाले , बावफा-बेवफा में अंतर, कहां बस एक बार होता है, वफा करना या नहीं करना, प्यार बस बेहिसाब कर लेना, बेवफाई में ही हमारी, जान बस तुम निसार कर लेना।