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मार्च, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कौन हो तुम?

क्यूं इस तरह , मेरी उलझने बढ़ाते हो? कौन हो तुम और, मुझसे क्या चाहते हो? देखो जरा सोंचकर, मन में परखकर बोलना, बाद में कहीं, पड़ जाए न पछताना, ये दुनिया है अजीब, यहां तेरी-मेरी नहीं चलती। ये भुलावा है दोस्त, सभी को है छलती। देखो कहीं बात उल्टी न हो, बोलना वही सबको पसंद हो। मन में दबा जाना, चाहते जो कहना, दबी-छुपी सी बातें, निकल आएं कहीं न? जग को भली लगे जो, कहने की रीत है? काजल की कालिमा सी, तेरे दिल की प्रीत है। दिल की दिल में रहने दो, अंजाम सोंच लो। बोलने से पहले, हर बात तोल लो।

अथ श्री ऑटोपुराणम्.....

भले ही आप कितने ही बड़े पद पर क्यों न हों, इन ऑटो वाले भाइयों के लिए एक सामान से ज्यादा कुछ नहीं है। जैसे किसी शक्कर सा आलू के बोरे को लादा जाता है, वैसे ही ये अपनी सवारियों को ठूंस-ठूंस कर बिठाते हैं। जैसे ही आप टैंपो स्टैंड पर पहुंचेगे इनकी खींचा तानी शुरू हो जाएगी। कोई बड़ी बात नहीं कि आपका हाथ पकड़ कर या सामान पकड़कर ये भैया लोग अपनी-अपनी ओर खींचने लगें। आपको पता है कि आटो में कितनी व्यक्तियों, माफ कीजिएगा, सवारियों को बैठाया जाता है। आपका जवाब होगा पीछे तीन और चालक के साथ केवल एक सवारी बैठाने का नियम है। तो भई इस मामले में हमारे शहर के ऑटोचालक भाई थोड़ा सा आजाद ख्याल है। पीछे कम से कम से चार और आगे तीन सवारियां तो बैठेंगी ही। हां अगर कोई महिला अपने बच्चों के साथ है तो पीछे की सीट पर चार से बढ़कर पांच या छह सवारियां बैठ जाएगी। आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि यह कैसे संभव है। बड़े-बड़े शहरों में छोटी-छोटी बातें तो होती ही रहती हैं। अगर किसी सवारी ने अन्य सवारी बिठाने से मना कर दिया तो इनका पारा सांतवें आसमान पर हो जाएगा। तो यह हिम्मत मत दिखाइएगा मेरे दोस्तों क्योंकि आपको उतरना भी प

आओ थोड़ा सा बदल जाएं

आज न जाने क्यों एक घटना याद आ गयी भले ही पुरानी सही पर याद करने को मन कर रहा है। हरियाणा का वेदपाल तो अदालत के आदेश पर अपनी पत्नी शिल्पी को लेने गया था । वहां जाकर उसे अपनी पत्नी के स्थान पर मिली मौत । उसके साथ गए पुलिस के जवान भी केवल अपनी जान बचा कर भागने में लगे रहे थे। एक ही गोत्र में विवाह या प्रेम विवाह में हत्या का यह कोई नया या इकलौता मसला नहीं है। हर रोज इस तरह के एक-दो मसले तो खबरों में छाए ही रहते हैं। परिवार या बिरादरी के सम्मान के नाम पर निर्दोष जिंदगियों को कुचला जाता है। इसमें सबसे बड़े दु:ख की बात तो यह है कि अधिकतर मामलों में अपने बच्चों पर जान छिड़कने वाले मां-बाप भी उनके खिलाफ खड़े हो जाते हैं। बच्चों की जान लेने में भी उन्हें जरा भी हिचक नहीं होती है। संविधान ने भारतीय नागरिकों को किसी भी धर्म या जाति में विवाह करने का अधिकार दे रखा है। न्यायालय में इस तरह के विवाह करने के बाद भी प्रेमी जोड़े खुशहाल जिंदगी जीने की आस में भटकते रहते है। उन्हें न तो परिवार का सहयोग मिलता है और न ही समाज का। इस तरह के मामलों में पुलिस और न्यायालय तब कुछ नहीं कर सकते हैं जब तक कि समाज इ