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सितंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हम भी शाह

पितरो के इन दिनों में, सारे कौवों की वाह-वाह है, उनके दिन भी फिर गये है. पितरो के बहाने वो भी मालामाल है. किसी ने सही कहा है कि, घूरे के दिन भी बहुरते है, सो सोचा कि अपने भी आयेगे, कभी हम होगे सबसे ऊपर, और उन पर हुकुम चलायेगे, जो आज है हमारे ऊपर, हो सकता है लगे कि सपना है, सपना हि सही, कौवो से गये गुजरे हम तो नहीं, ये दिन भी गुजर जायेगे, हम भी शाह कहलायेगे .