वह हवा में उड़ रहा था, नीचे भी पड़ा हुआ था. उसके चारो ओर नाते-रिश्तों का, जमावडा लगा हुआ था. पर वह था नितांत अकेला. घबराना जायज था सो वह भी खुद को रोक न सका. चीखा-चिल्लाया पर सब बेकार, किसी पर कोई असर नहीं था. पत्नी दहाड़े मार रो रही थी, पुत्रो में चलने की तैयारी के, खर्चे की चर्चा हो रही थी, आज वे अपने पिता पर खूब खर्च करके, पूरा प्यार लुटा देना चाह रहे थे . बीमारी में तंगी का बहाना करने और इलाज के खर्च से बचने के, सारे नखरे पुराने लग रहे थे . उन्हें जल्दी थी तो बस , पिता का शारीर ठिकाने लगाने की. ताकि उन्हें वसीयत पढने को मिले. किसको क्या मिला ये राज खुले. अंतिम यात्रा की तैयारी में गाजे बाजे का बंदोबस्त भी था. आखिर भरा-पूरा परिवार जो छोड़ा था. शमसान पर चिता जलाई गयी, उसे याद आया घी के कनस्टर उदेले गये, इसी एक चम्मच घी के लिये, बड़ी बहु ने क्या नहीं सुनाया था, उसे लगा मरकर वह धन्य हो गया, कुछ घंटों में निर्जीव शरीर खाक हुआ. अब सारे लोग पास की दुकान पर, टूट से पड़े एक साथ. समोसे-गुझिया चलने लगे. कुछ तो इंतजामों की करते थे बुराई, वहीँ कुछ ने तारीफों की झडी लगायी, अब उससे सहन नहीं हुआ , और
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.............
जवाब देंहटाएंआपके ब्लोग का नाम बड़ा अच्छा लगा - बात बताशा
जवाब देंहटाएंहर इक कदम पर ,
जवाब देंहटाएंसाथ चल सकती हूँ मै ,
शर्त इक ही है ,
मुझसे मेरा नाम न छीनो .
बहुत सुन्दर रचना
अच्छा लगा यहाँ आकर
आभार
कृपया वार्ड वेरिफिकेशन की बोझिल प्रक्रिया हटा दें, इसके कारण प्रतिक्रिया देने में बेवजह असुविधा होती है.
जवाब देंहटाएं[डेशबोर्ड की सेटिंग में जाकर इसको हटाया जा सकता है]
किसी को किसी का नाम छीनने का अधिकार नहीं है दोस्त।
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