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फ़रवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खुशी मनाओं हम लड़कियां हैं

महिला दिवस आने वाला है तो कुछ महिलागिरी हो जाए। औरतों पर अत्याचार और अपराधों की तो चर्चा होती ही रहती है पर जरा अब लड़की होने के फायदे भी गिन लिए जाए। बेटे के पैदा होने पर भले ही लोग खुश होते हों पर यही सोंच लड़कियों का फायदा कराने लगती है। भाई को राखी बांधने पर गिफ्ट की हकदार होती है लड़की। हमेशा भाई ही बहन के लिए गिफ्ट खरीदता है बहनों को तो यह काम यदा-कदा ही करना पड़ता है। नवरात्र में बहनों को तो बढिय़ा-बढिय़ा पकवान खाने को मिलते है और बेचारे छोटे से मुन्नू मियां समझ ही नहीं पाते कि कोई उन्हें क्यों नहीं बुलाता। स्कूल में टीचर्स का पारा अधिकतर लड़कों पर ही हाई रहता है लड़कियां बेचारी तो हमेशा पढऩे में मन ही लगाती हैं। नालायक, पाजी, बदमाश जैसे सारे एवार्ड अधिकतर लड़कों के ही खाते में आते हैं। हम लड़कियों की आवाज में जादू होता है। एक बार सुरीली आवाज में किसी से कोई काम कहा और सामने वाला हर तरह से आपका काम करने को तैयार। कहीं आंसू निकल आए तो काम बनने में बिल्कुल देर नहीं लगेगी।और हां हमारे इस फायदे की शिकायत लड़कों को अक्सर रहती है। कई बार कहते सुना है, फलां को लड़की होने का फायदा मिला है

Fwd: अधिकार

अधिकार मत मांगो, अधिकार ले लो, क्योंकि यह तो , छीनने की चीज है, जीतने की चीज है, पाने की चीज है। अधिकार चाहते हो, तो कर दो तुम समर्पण, साथ रखो पवित्रता का, मन हो पावन, न हो कोई दुर्भावना। रिश्तों को बनाने में, विश्वास बड़ी चीज है, विश्वास जीतने की, कर लो तुम कोशिश, साधिकार तुम मानो। रिश्तों की परिभाषा भी, कोई एक ही नहीं है, भावना हो पवित्र तो, कोई बुराई नहीं है, साथ किसी का चाहना अधिकार किसी पर है, बनता इसी विश्वास से, टूटेगा न ये रिश्ता, किसी अंधड़ या तूफान से, न तो किसी मांग से। रिश्तों में नहीं होती, केवल लेने की चाह, देने की चाह हो तो, लाती है संपूर्णता।

लौट आ घर

  साँझ ढली जाती है, मेरा भोला पंछी न आया . क्या किसी शिकारी ने , जंगल में है जल बिछाया. दाना-दाना किया इकट्टा , सारा दिन वो धूप में घूमा, जाने किसने मारा झपट्टा, यहाँ बैठकर कर रही, दिन भर से इंतजार , न जाने उत हल क्या? कहाँ है वो बहल , राह भटक न जाये वो , भोला है नादान, फस के जल में कहीं , निकल न जाये जान , अँधेरा गहरा रहा , मन के भीतर और बाहर, भूला-भटका ही सही, लौट आए बस घर .

छोर

मायूसियों के बादल, छंट जायेगे, एक नई  सुबह आयेगी , दस्तक देगी द्वार , बादल जायेगे तेरे विचार. धुंध अँधेरी न फैलाना , अपने चारो ओर, सारे रस्ते न देना रोक , किसी छिद्र या किसी सुराख़ से , सूरज कि किरने आयेगी , करेगी तुझको भावविभोर , मिलेगा तुझको भे एक छोर, हौले -हौले संभलेगा सब , बिखरा है जो चारो ओर , दामन आशा का न छोड़ . मिलेगा तुझको भी एक छोर , मिलेगा तुझको भी एक छोर.    

क्यों बलात्कार कि शिकार भुगते सजा

  नीलम की मौत ने एक सवाल खड़ा कर दिया है हमारी न्याय व्यवस्था और सामाजिक मान्यताओ पर. बलात्कार करता तो पुरुष है पर इसकी सजा उस महिला को ताजिंदगी भुगतनी पड़ती है . यह कैसा समाज है जो पीडिता को ही परेशां करने में कोए कसार नहीं छोड़ता . मुझे तो इसका एक ही हल नजर आता है . भले ही किसी बुरा क्यूँ न लगे . बलात्कार करने वाले पुरुषो का एक छोटा और सामान्य सा ऑपरेशन करके उन्हें एस काबिल ही न छोड़ा जाये कि वो दुबारा यह हरकत करने काबिल ही न राह जाये. किसी भी लड़की के साथ यैसा करते समाया उन्हें यही लगता हिया कि कि पैसे के जोर से या दबाव डालकर वो पीडिता कि आवाज दबा देगे . पहले तो मुकदमा ही जाने कितना लम्बा खिचेगा , इतने समाया में पीडिता सामाजिक जिल्लत से मजबूर होकर या तो केस वापस ले लेगी या अपनी जान दे देगी . इन अपराधियों के मन में डर बिठाने कि जरूरत है . इसलिए उन्हें अंग भंग कर देना ही सबसे अच्छा विकल्प है. कम से कम वे भी पीडिता कि तरह जिन्दगी भर सजा भुग्तेगे.  हर बार उन्हें एहसास होगा कि उन्होंने क्या किया है.इस एक सजा के अतिरिक्त उन्हें आजाद छोड़ दिया जाये. जब इस तरह कि कुछ नजीरें सामने आएगी तभी