साँझ ढली जाती है,
मेरा भोला पंछी न आया .
क्या किसी शिकारी ने ,
जंगल में है जल बिछाया.
दाना-दाना किया इकट्टा ,
सारा दिन वो धूप में घूमा,
जाने किसने मारा झपट्टा,
यहाँ बैठकर कर रही,
दिन भर से इंतजार ,
न जाने उत हल क्या?
कहाँ है वो बहल ,
राह भटक न जाये वो ,
भोला है नादान,
फस के जल में कहीं ,
निकल न जाये जान ,
अँधेरा गहरा रहा ,
मन के भीतर और बाहर,
भूला-भटका ही सही,
लौट आए बस घर .
सुंदर। अति सुंदर। भावप्रवणता अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंसूर्यकांत द्विवेदी
dskantd@gmail.com
bahut acha likhte ho.very nice.agli kavita kab ayegi
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
जवाब देंहटाएंbahut acha likhti ho.
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