सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मन की भटकन

समय गुजरता जाता है और जिंदगी भी अपने कदमों के निशान छोड़ती हुई आगे बढ़ती है। लोगों की दोस्ती, बाहरी शोर-शराबे और भाग-दौड़ में हम इतना व्यस्त हो जाते हैं कि शायद अपने लिए ही समय नहीं मिलता। फिर किसी दिन कोई याद दिला दे कि आप क्या करते थे, आपके क्या शौक थे, तो मन फिर से उन यादों में लौट जाता है। इसके बावजूद समय किसी के लिए नहीं ठहरता, आगे बढ़ता जाता है, और हम बस केवल याद ही कर सकते हैं। शायद यह मेरी ही नहीं बल्कि हर एक की कहानी हैः



कुछ भीड़-भाड़ पर खाली सा,
मन मेरा भटकता हर तरफ,
किन दिनों की याद और किन दिनों का साथ,
कहां से बनती मन की बात।
हर ओर एक धुंधलका होता,
हर ओर एक वीरानी,
कितनी कहानियां मन को टटोलती,
कितने ही किस्सों से मन की,
होती रहती हरदम बात।
दिन-दिन समय है बढ़ता जाता,
फिर भी कुछ क्यों समझ न आता,
न हारी न जीती हूं मैं,
समय का मिला जहां तक साथ।

कुछ किस्सों की नायिका,
कुछ की हूं खलनायिका,
कितने ही दिन गुजर गए,
बनी नहीं कुछ बात।
दोस्तों की दोस्ती और,
दुश्मनों की दुश्मनी,
हुए सब वर्षों में बेकार।
बची है तो एकदम नीरवता,
और तनहाई का साथ।।

 

टिप्पणियाँ

  1. नायिका ही हो सबकी, खलनायिका तो सिर्फ अपने लिए,
    आपने दिल की गहराइयों में उतरकर लिखा, लिखते रहिए और लोगों को सिखाते रहिए, जिंदगी जीने की कला,

    जवाब देंहटाएं
  2. हमारे साथ रहता है वो अजनबी बनकर, दिल का दरवाजा उनकी हर आहट पे खुलता है........आपको नहीं लगता इसमें कुछ बदलाव की आवश्‍यक्‍ता है

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

प्यार बार बार होता है

कौन कहता है कि प्यार, सिर्फ एक बार होता है। ये तो इक एहसास है जो, बार-बार होता है। इसके लिए कोई सरहद कैसी, ये तो बेख्तियार होता है, कब कौन कैसे, भला लगने लगे, खुद अपना अख्तियार, कहां होता है? प्यार में शर्त बंधी हो जो, तो भला ये प्यार कहां होता है। शर्तो में बंधने वाले , बावफा-बेवफा में अंतर, कहां बस एक बार होता है, वफा करना या नहीं करना, प्यार बस बेहिसाब कर लेना, बेवफाई में ही हमारी, जान बस तुम निसार कर लेना।

जिंदगी तुझे तो मैं भूल ही गई थी

 तो आधी जिंदगी गुजर चुकी है, बाकी भी गुजर ही रही है,लगातार चलती ही जा रही है, पर अभी भी मन बचपन सा ही है, जो जिंदगी पीछे रह गई उसके खट्टे-मीठे पल, छोटी-छाेटी खुशियों की ही याद रह गई है। जो किसी समय लगता था कि बड़ी परेशानियां हैं, उन्हें याद करके बस अब हंसी ही आती है, कितनी बेवकूफ़ और पागल थी मैं कि थोड़ा सा कुछ हुआ और बिफर पड़ी, किसी की बात सुनती भी नहीं थी और खुद ही पहले बोलने लगती थी। किसी ने कुछ कहा नहीं कि मैने उसकी बात से भी बड़े-बड़े अंदाजे लगा लिए और लग गई अपना ही हवा महल बनाने। भले ही कोई कुछ और कहना चाहता हो पर समझना कुछ और, यही तो किशोरावस्था से युवावस्था के बीच की उम्र का असर होता है। बड़े-बड़े सपने, और हवा-हवाई बातें, अगर नही की तो बीस से पच्चीस के बीच की उम्र जी ही नहीं। इन्ही बातों से तो जिंदगी बनती है। आज वही बातें फिर से याद आ रही हैं और बड़े दिनों बाद समय निकालकर ब्लॉग पर आ गई, कभी किसी दोस्त ने कहा थी कि लिखना नहीं छोड़ना, मैं उसकी बात भूल ही गई थी, जिंदगी की आपा-धापी और बदलावों के थपेड़ों के साथ संतुलन बनाना आपको कहां से कहां लाकर खड़ा कर देता है। कोई बात नहीं बहुत द

जय हो माता निर्मला देवी !

अब कौन समझाये की देश से बढ़कर कुछ भी नही। अपने आप को भगवान् कहने वाले लोग क्यों भूल जाते है की वे भी भारत में पैदा हुए है। पैरो पर तिरंगा !उफ़ ,यह अपमान ।