अनंत आकाश की रचना करके,
जब परमात्मा थकता होगा,
विश्राम कहां पाता होगा?
किससे आसरा मांगता होगा?
उसमें भी तो जगती होगी,
जीवन जीने की प्यास,
उसको भी तो होता होगा,
हार-जीत का एहसास।
है कौन देता उसे सहारा?
आशा और निराशा में,
किसकी सहायता से वह,
जीवन की उर्जा पाता होगा,
क्या उसको भी कोई नारी,
देती होगी विश्राम,
हां शायद बात यही है सही,
जो सबसे वह छुपाता होगा।
सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
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