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दफ्तर में कंडोलसेंस पर


खुदा भी जिसे जरूरत होती है उससे मुंह मोड़ लेता है और जरूरत न होने पर हर तरफ से बरसात करता रहता है, ऐसा ही होता है जब किसी अधिकारी स्तर के व्यक्ति की मौत पर तो पूरा ऑफिस का अमला अपना एक-एक दिन का वेतन कटवाने को तैयार हो जाता है और अगर कोई निचले स्तर का कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना का शिकार हो जाए तो कोई पूंछने वाला भी नहीं होता ..............

सादर, श्रद्घेय समर्पित जन,
तुम चले गए उस पार,
तुम्हारी मौत का कष्टï है,
हमें तो है बहुत ही अपार,
मेरी श्रद्घा सुमन तुम्हे है,
संवेदनाएं भी साथ हैं,
तुममें और मुझमें भले ही,
फर्क हो राजा भोज-गंगू तेली का,
पर साथी हम एक ही फर्म के,
तुम्हारे जाने के बाद,
भले ही हम परिचित न हों,
कंडोलसेंस देना नैतिक फर्ज है,
पर एक सवाल है,
जो बार बार कचोटता है,
कि क्या जब कोई छोटा,
साथी भी जाएगा उस बार,
उस पल भी सबके दिलों में,
बहेगी सहानुभूति की बयार,
तब भी क्या मेल चलेगी,
और कटेगा एक दिन का वेतन,
मुझे नहीं लगता ऐसा,
क्योंकि पिछले ही दिनों,
एक साथी ने खाया था जहर,
यही नहीं कई और भी गए,
पर उन्हें नहीं मिली सहानुभूति,
तुम होते तो पूंछती,
क्या यह है सही?

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