मैंने भी अपने बचपन में,
मिट्टी के टुकड़े खाए हैं,
अब भी इसकी सोंधी महक,
इतनी अच्छी लगती है,
कि बारिश के दिनों में,
खुद को रोक ही नहीं पाती,
सबसे छुपकर चुपचाप,
बटोरकर रखती हूं इसे,
किसी अमूल्य खजाने सा,
देख लेने पर कई बार,
मां ने भी टोंका है,
कैल्शियम की कमी होने,
और इलाज को कहा है,
पर उन्हें क्या मालूम,
कैल्शियम की कमी नहीं है,
यह तो मुझे स्वाद देती है,
किसी मिठाई से भी अधिक,
मैं कुछ भी छोड़ पर,
यह नहीं छोड़ सकती,
पर किसी को बताना मत,
ये राज ही हूं रखती
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