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क्यों बलात्कार कि शिकार भुगते सजा

 
नीलम की मौत ने एक सवाल खड़ा कर दिया है हमारी न्याय व्यवस्था और सामाजिक मान्यताओ पर. बलात्कार करता तो पुरुष है पर इसकी सजा उस महिला को ताजिंदगी भुगतनी पड़ती है . यह कैसा समाज है जो पीडिता को ही परेशां करने में कोए कसार नहीं छोड़ता . मुझे तो इसका एक ही हल नजर आता है . भले ही किसी बुरा क्यूँ न लगे . बलात्कार करने वाले पुरुषो का एक छोटा और सामान्य सा ऑपरेशन करके उन्हें एस काबिल ही न छोड़ा जाये कि वो दुबारा यह हरकत करने काबिल ही न राह जाये.
किसी भी लड़की के साथ यैसा करते समाया उन्हें यही लगता हिया कि कि पैसे के जोर से या दबाव डालकर वो पीडिता कि आवाज दबा देगे . पहले तो मुकदमा ही जाने कितना लम्बा खिचेगा , इतने समाया में पीडिता सामाजिक जिल्लत से मजबूर होकर या तो केस वापस ले लेगी या अपनी जान दे देगी . इन अपराधियों के मन में डर बिठाने कि जरूरत है . इसलिए उन्हें अंग भंग कर देना ही सबसे अच्छा विकल्प है. कम से कम वे भी पीडिता कि तरह जिन्दगी भर सजा भुग्तेगे.  हर बार उन्हें एहसास होगा कि उन्होंने क्या किया है.इस एक सजा के अतिरिक्त उन्हें आजाद छोड़ दिया जाये.
जब इस तरह कि कुछ नजीरें सामने आएगी तभी ये घटनाये रुकेगी.  

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