सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कमियां भी स्वीकार करो..............

करना है मुझको प्यार करो,
पर कमियां भी स्वीकार करो..............
मेरी नजरों से तुम देखो,
मेरे सपनों के गाँव को .
मेरे जीवन की धूप में,
बनकर तो देखो छाँव जरा.
राह भटकती दिखूं अगर मै,
दीपक बनना अवरोध नहीं,
मेरे गुण, मेरे अवगुण ,
सब सामने है,प्रतिरोध नहीं ,
जो हूँ जैसी स्वीकार करो .
करना है मुझको प्यार करो,
पर कमियां भी स्वीकार करो.............
मेरी कमियों को ढक लेना,
तुम अपनी अच्छाई से ,
झूठों का बोझ उठा लेना ,
गर लगे तुम्हे, सच्चाई से .
हाँ थोडा सा तो नादाँ हूँ,
पर नादानी प्यारी मुझको,
बच्ची हूँ तो यही सही,
बच्ची से ही तुम प्यार करो ...
करना है मुझको प्यार करो,
पर कमियां भी स्वीकार करो.............
स्वीकार मुझे मेरी कमियां,
पर कोई तो सम्पूर्ण नहीं.
बनकर एक सच्चे साथी,
हर रूप से मेरे प्यार करो.
करना है मुझको प्यार करो,
पर कमियां भी स्वीकार करो..........



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

प्यार बार बार होता है

कौन कहता है कि प्यार, सिर्फ एक बार होता है। ये तो इक एहसास है जो, बार-बार होता है। इसके लिए कोई सरहद कैसी, ये तो बेख्तियार होता है, कब कौन कैसे, भला लगने लगे, खुद अपना अख्तियार, कहां होता है? प्यार में शर्त बंधी हो जो, तो भला ये प्यार कहां होता है। शर्तो में बंधने वाले , बावफा-बेवफा में अंतर, कहां बस एक बार होता है, वफा करना या नहीं करना, प्यार बस बेहिसाब कर लेना, बेवफाई में ही हमारी, जान बस तुम निसार कर लेना।

जिंदगी तुझे तो मैं भूल ही गई थी

 तो आधी जिंदगी गुजर चुकी है, बाकी भी गुजर ही रही है,लगातार चलती ही जा रही है, पर अभी भी मन बचपन सा ही है, जो जिंदगी पीछे रह गई उसके खट्टे-मीठे पल, छोटी-छाेटी खुशियों की ही याद रह गई है। जो किसी समय लगता था कि बड़ी परेशानियां हैं, उन्हें याद करके बस अब हंसी ही आती है, कितनी बेवकूफ़ और पागल थी मैं कि थोड़ा सा कुछ हुआ और बिफर पड़ी, किसी की बात सुनती भी नहीं थी और खुद ही पहले बोलने लगती थी। किसी ने कुछ कहा नहीं कि मैने उसकी बात से भी बड़े-बड़े अंदाजे लगा लिए और लग गई अपना ही हवा महल बनाने। भले ही कोई कुछ और कहना चाहता हो पर समझना कुछ और, यही तो किशोरावस्था से युवावस्था के बीच की उम्र का असर होता है। बड़े-बड़े सपने, और हवा-हवाई बातें, अगर नही की तो बीस से पच्चीस के बीच की उम्र जी ही नहीं। इन्ही बातों से तो जिंदगी बनती है। आज वही बातें फिर से याद आ रही हैं और बड़े दिनों बाद समय निकालकर ब्लॉग पर आ गई, कभी किसी दोस्त ने कहा थी कि लिखना नहीं छोड़ना, मैं उसकी बात भूल ही गई थी, जिंदगी की आपा-धापी और बदलावों के थपेड़ों के साथ संतुलन बनाना आपको कहां से कहां लाकर खड़ा कर देता है। कोई बात नहीं बहुत द

जय हो माता निर्मला देवी !

अब कौन समझाये की देश से बढ़कर कुछ भी नही। अपने आप को भगवान् कहने वाले लोग क्यों भूल जाते है की वे भी भारत में पैदा हुए है। पैरो पर तिरंगा !उफ़ ,यह अपमान ।