दो जिस्म एक जान' का मुहावरा तो सभी ने सुना होगा पर 'दो जिस्म एक आवाज' को सार्थक करते है भारत के मशहूर वेन्ट्रिक्विलिस्ट रामदास पाध्ये। रामदास पाध्ये और उनकी टीम द्वारा तैयार की गई 'बोलती गुड़ियों' ने उन्हे आम लोगों के बीच खास पहचान दी। लिज्जात पापड़ के 'कर्रम-कुर्रम बनी' और फिल्म दिल है तुम्हारा के 'रंगीला' को भला कौन भूल सकता है? पिछले चार दशकों के दौरान वे देश-विदेश में अनगिनत शो कर चुके है। उनसे मेरे ई-मेल इंटरव्यू के कुछ अंश-
सबसे पहला सवाल जिसमें सभी पाठकों की उत्सुकता होगी, वेन्ट्रिक्विलिज्म क्या है?
यह एक ऐसी कला है जिसमें कलाकार किसी गुड़िया या पपेट को अपनी आवाज देता है, पर दर्शकों को भ्रम होता है कि गुड़िया खुद बोल रही है। इसे 'शब्दभ्रम' या बोलती गुड़िया का खेल भी कहा जाता है।
आपने यह कॅरियर ही क्यों चुना?
मेरे पिता वाई. के. पाध्ये भारत के मशहूर वेन्ट्रिक्विलिस्ट और जादूगर थे। मैजिक शो में उनके साथ रहने के दौरान मेरा रुझान इस कला की ओर हुआ। बचपन में पिताजी की पपेट को देखकर सोचा करता था कि वे केवल पिताजी से ही बात क्यों करती है? एक दिन मैंने पिताजी से पूछ ही लिया कि मैं इनसे कैसे बात कर सकता हूं? उन्होंने कहा कि इसके लिए तुम्हें उनके साथ परफार्म करना होगा और इस तरह आठ साल की उम्र में मेरी ट्रेनिंग शुरू हो गई।
बचपन में शरारत भी करते थे?
नहीं, मैं पढ़ाकू था। मुझे शरारत करना बिल्कुल पसंद नहीं था। हाँ, चीजों को जानने की जिज्ञासा बहुत थी। बचपन की एक घटना याद आती है जब पिताजी एक नई पपेट लेकर आए थे। मुझे यह जानने की इच्छा हुई कि यह बात कैसे करती है? मैने पूरी पपेट के अंगों को अलग-अलग कर डाला। थोड़ी ही देर में उसका सिर, पैर, हाथ सब अलग-अलग पड़े थे। यह सब करने के बाद भी मैं उसके बात करने का कारण नहीं जान सका। इस घटना पर पिताजी को छोड़कर बाकी घरवाले मेरे ऊपर बहुत नाराज हुए।
पहले शो के दौरान कैसा अनुभव रहा?
मैंने 1967 में पहला शो किया था। यह मौका एक मैगजीन की लांचिंग का था। इसको लोगों ने काफी पसंद किया और मेरे पिताजी को विश्वास हो गया कि मैं उनकी इस विरासत को आगे ले जा सकता हूं।
भारत के शीर्षस्थ पपेटियर होने पर कैसा लगता है?
मेरे लिए इससे बढ़कर खुशी और सम्मान की बात दूसरी हो ही नहीं सकती है। इसके लिए अपने प्रशंसकों,परिवार, मित्रों और सभी शुभचिंतकों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं जिन्होंने हर कदम पर मेरा साथ दिया। मैंने टीवी, थियेटर, विज्ञापन फिल्मों और फीचर फिल्मों के माध्यम से इस कला का प्रदर्शन किया है। 42 साल इस क्षेत्र में रहने के बाद भी मुझे लगता है जैसे मैंने कल ही शुरुआत की हो।
इस क्षेत्र में आने वाली नई प्रतिभाओं से कुछ कहना चाहेगे?
बिल्कुल, आज युवाओं में धैयै की कमी है। वे जल्दी पैसा और शोहरत कमा लेना चाहते है, लेकिन किसी भी कला को सीखने के लिए लगातार अभ्यास और धैर्य की बहुत आवश्यकता होती है। मैं युवाओं से कहना चाहता हूं कि अभ्यास के लिए लगातार समय देने से वे अच्छा पैसा कमाने के साथ ही नाम भी कमा सकते है।
एक पपेटियर में क्या बातें सबसे जरूरी होती है?
उसको बहुमुखी व्यक्तित्व का धनी होना चाहिए। किसी भी चरित्र को करते समय उसमें पूरी तरह से डूब जाना चाहिए, जिसके लिए अच्छा अभिनेता होना बहुत जरूरी है। मूवमेंट के अच्छे ज्ञान के साथ ही यह निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए कि किस परिस्थिति में पपेट के लिए कौन सी मुद्रा या हरकत उपयुक्त रहेगी। इसके साथ ही एक वेन्ट्रिक्विलिस्ट में कॉमेडी के साथ ही खुद की स्क्रिप्ट विकसित करने की क्षमता होनी चाहिए।
आपका ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है?
मैं अटलांटा के सेंटर फॉर पपेट्री आर्ट्स की तरह ही भारत में एक इंस्टीटयूट स्थापित करना चाहता हूं जहां पर छात्रों को वेन्ट्रिक्विलिज्म और पपेट्री की कला से जुड़ी हर जानकारी दी जाए। मैं इस सपने को पूरा करने के लिए काम कर रहा हूं। भगवान की कृपा और प्रशंसकों की दुआ से जल्दी ही यह सपना सच हकीकत में बदल जाएगा।
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