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नवंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नाम न छीनो

शायद हर एक लड़की के मन में यही पुकार उठी होगी जिसे वो किसी से कह नहीं पाती .............हमेशा यही एक डर उसके मन में होता है ........................... जो हूँ वही रहने दो , बस इतना एहसान कर दो , मुझे खुद में मिलाकर तुम , मेरी पहचान मत छीनो, ऐसे भी रह सकती हूँ , तुम्हारी होकर के मै, मुझसे मेरे जीने का तो , आधार मत छीनो , कमी कोई नहीं मुझमे , बस चाह इक ही है , थोड़ी सी जगह जो है मेरी , उसको भी न ले लो , हर इक कदम पर , साथ चल सकती हूँ मै , शर्त इक ही है , मुझसे मेरा नाम न छीनो .

मन का राक्षस

रात के एक पहर में , निस्तब्धता हो भले ही , धडकने पर तेज़ हो जाती है . हर एक हलचल से बेखबर, मन कि आवाज का राक्षस , लेकर भयावना सा रूप , बाहर निकल आता है . भयभीत करता है मुझे , हर पल डराता है , अपने ही कामों , और व्यवहार के लिए , कभी मेरा मन मुझे ही , धिक्कारता रहता है , तो कबी यह दिखाकर , सुनहले सपने मेरी, आँखों में भर देता सुकून, हर पल बोझिल होती आंखे , इस राक्षस से डरती है , कभी यह रुलाता है तो , कभी बेजा मुस्कान देता है , कितना भी दूर भागू , अतीत में ला पटकता है , मन का यह राक्षस , रात के गुजरते ही , चमचमाते दिन में , न जाने किस खोह में , छुप जाता है जाकर यह , अगले दिन फिर आने का , वादा करके ये निर्मोही .