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कैसे कह दूं?

प्यार में जब कोई डूब जाता है तो दूर जाने की कल्पना करना भी बहुत कठिन होता है। हर पल, हर समय बस उसकी ही याद आती है, उसके ही सपने, उसकी ही बातें बाकी सारी बातें तो एक किनारे हो जाती है, और ऐसे में अगर साथी से दूर जाना पड़े तो समझ नहीं आता कि आखिर कैसे यह किया जाए, भले ही मुंह से कुछ कहा न जाए पर एहसास तो रह ही जाता है खोखली हैं बातें सारी, भारहीन सारे कारण। जो तुम्हें मैं दे दूं, दूर जाने के लिए। तुम क्या जानों, चाहती मैं क्या हूं? शिखर पर तुम्हे देखना, और साथ में मैं रहूं। हर पल साए की तरह, रहना ही मकसद है मेरा, पर इसके लिए बता, क्या तोड दूं हर आसरा। तोडना भी नहीं कठिन, मेरे लिए कोई बंधन, पर कुछ जाने-पहचाने चेहरे, आकर रोक लेते हैं मन। इक तेरी याद में, दुनिया भुलाए बैठी हूं। सुनती हूं सबकी बातें, हर पल होता है चरित्र हनन, पहले अकड जाती थी, सुनकर बात ऐरी-गैरी, दूसरों की बात सुनकर, अब यों ही हंसती हूं मैं। तेरा जीवन में आना, लाया है कितना परिवर्तन, पागलों सी बातें मेरी, अक्ल हो गई है गुम। कैसे कहूं तुझसे कि, एहसास कितना अच्छा है। कैसे जताऊं मैं कि, तेरा साथ कितना अच्छा है।

विश्राम कहां पाता होगा?

अनंत आकाश की रचना करके, जब परमात्मा थकता होगा, विश्राम कहां पाता होगा? किससे आसरा मांगता होगा? उसमें भी तो जगती होगी, जीवन जीने की प्यास, उसको भी तो होता होगा, हार-जीत का एहसास। है कौन देता उसे सहारा? आशा  और निराशा  में, किसकी सहायता से वह, जीवन की उर्जा पाता होगा, क्या उसको भी कोई नारी, देती होगी विश्राम, हां शायद बात यही है सही, जो सबसे वह छुपाता होगा।