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जुलाई, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मौत के बाद ही सही

दिल के किसी कोने में दबी रह जाती है मन की आवाज। कई बार बोलना चाहो पर शब्द नहीं मिलते? कई बार हम खुद अपने किए से संतुष्ट नहीं होते हैं क्योंकि उसका असर हमारी भौतिक जिंदगी पर पड़ता है। इसके बावजूद अंतर्मन की आवाज कभी गलत नहीं होती है। यह कभी भी हमें गलत राह पर नहीं चलने देती है। तब खुद से सवाल करना पड़ता है----------- नैराश्य के पर कही तो मुलाकात होगी पुछूगी तब क्या सोंच थी तेरी ? हरित उपवन में नहीं,झंकड़ में सही, मिलाना तो तुझे है ही. यही भाग्य का न्याय है की, भटकता हुआ सा जीव बने तू. संकल्प-विकल्प, आशा-निराशा, के झंझावातों में झूलना, ही तेरा प्रारब्ध है . तुझे देखर मन मेरे, हर कोई स्तब्ध है. कि तू दिखता है हसता-हसाता, हंसी का पात्र बनता हुआ . पर किसी को नहीं दीखता, खून कही से रिसता हुआ . कौन समझेगा कि तू, है बड़ा ही हठी,छोड़ पाना , ये हठ भी शायद तेरे बस में नहीं. तू सोचता है जैसा, उल्टा सोचते है सभी . तुझे समझाना शायद, मेरे बस में भी नहीं है . कहाँ तक चलेगी तेरी हठधर्मिता ? हर जगह पर मत खानी पड़ेगी. समझ जा अभी, मन जा अभी दुनिया

भूला नहीं जाता

कुछ दिनों की यादें भूलने के लिए नहीं होती हैं। शायद उनकी नियति हमेशा याद आना होता है पर बिल्कुल चुपचाप । कुछ ऐसे ही जजबात दिल में भरे रहते हैं। कुछ कहते हैं। वो घूमना संग-संग, वो बैठना साथ-साथ, वो बातों में घुला रंग, वो देखना चुपचाप, हर बात में सिर हिलाना केवल, बस मानना चुपचाप, देखना फिर खुश होना मेरा, बात बिना बात , भूला नहीं जाता। रोज मिलने की जिद करना, बुलाने पर चले आना, कोई नाता न होने पर भी, हर नाता निभाना, वो मेरा बेवजह नाराज होना, और तेरा सुनना बेबात, वो घंटों बाद ये कहना, मेरी गलती न थी जनाब, भूला नहीं जाता। अब तो दूरी है, केवल याद बाकी है, फिर भी तेरा जिक्र आने पर, तेरी यादों का सैलाब, भूला नहीं जाता।