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मई, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हाय! हाय ! नया जमाना

काफी इंतजार के बाद ढूलन भाई फिर हाजिर है चौबे जी की चोटों के साथ चौबे जी हमारे मुहल्ले के पंडित जी है .शादियाँ करवाते है .पूरा नाम चंगूलाल चौबे .अच्छी-खासी दछिना के साथ ही दो चार किलो भोजन भी पेट के अंदर कर जाते है और डकार तक नहीं लेते. पोपले मुख से जब हसते है तो बड़ा विकट द्रिश्य उत्पन्न होता है.कल सुबह जब उन्हें देखा तो तो हाथ-पैरो में पट्टी बंधी थी और एक आँख फूल कर काले बैंगन की तरह दिखाई दे रही थी .घर से निकल रहे थे कि हमने पकड़ लिया. मुह चुरा कर भागे जा रहे थे पर ढूलन भाई के हाथो में रसगुल्ले कि प्लेट देखकर शायद उनका मन बदल गया .उनके घावों को देखकर ढूलन भाई को भी सहानुभूति हुई . भाई ने पूछा, चाचा ई पट्टी-वट्टी कैसे बंध गयी ? "का बताये ढूलन कलही हम एक बियाव करवावै गये रहन" वो तो ठीक है प इ शादी मा बर्बादी कैसे भई ? " नओ जमाना मा तो नई बात हुइबै करी " वो परेशान से बोले . ढूलन भाई चौंक गये कि नए ज़माने और पंडित जी कि चोंटो का क्या कनेक्शन . ढूलन भाई ,''कैसा नया जमाना चाचा ई नया जमाना ने तुम्हारा क्या बिगाडा है? ऐसा लगा कि बात सुनकर उनका मन कसैला हो

मै खुश हूँ

आज मै खुश हूँ! क्योकि एक हारा हुआ इन्सान , लिखकर सुसाईड नोट फांसी पर लटक गया . क्यों न होऊ खुश ? क्योकि आजाद हो गयी है , उसकी पत्नी संध्या , जो कल तक थी, उसकी बंध्या . पर क्या आजाद है वह ? शायद नहीं, अब कोई भी  उससे, नहीं छीनेगा रूपये, न बिकेगे घर के बर्तन, न ही मंहगे कपडे . अब वह रह सकती है सुखी . जमा कर सकती है दौलत . पर क्या वह कर पायेगी , उसका स्वयं इस्तेमाल , क्या पहन पायगी , पसंद के कपडे-लत्ते . या रह पायगे सुकून से , शायद नहीं, पर क्यों ? क्योकि भारत में, इजाजत नहीं है एक स्त्री को, स्वंत्रता से रहने की . हर रूप में वह , किसी न किसी की बंध्या है, चारो ओर ही देखो , मिलेगी एक संध्या , पुत्री पर पिता का , बहन पर भाई का, माँ पर बेटे का , पत्नी पर  पति  का, सदा ही नियंत्रण है . किसी भी  अवस्था में वह, अकेली नहीं रह सकती, और अगर रहना भी चाहे तो , हमारा सभ्य समाज उसे. अनगिनत नाम दे देगा . जैसे स्त्री ने ही लिया है , सभी की अस्मिता का ठेका . खुश हूँ मै भी क्योकि, इस नियंत्रण मे भी स्त्रीयां, व्रत रखती है,पूजा करती है , अपने मालिको के लिए, भ