काफी इंतजार के बाद ढूलन भाई फिर हाजिर है चौबे जी की चोटों के साथ चौबे जी हमारे मुहल्ले के पंडित जी है .शादियाँ करवाते है .पूरा नाम चंगूलाल चौबे .अच्छी-खासी दछिना के साथ ही दो चार किलो भोजन भी पेट के अंदर कर जाते है और डकार तक नहीं लेते. पोपले मुख से जब हसते है तो बड़ा विकट द्रिश्य उत्पन्न होता है.कल सुबह जब उन्हें देखा तो तो हाथ-पैरो में पट्टी बंधी थी और एक आँख फूल कर काले बैंगन की तरह दिखाई दे रही थी .घर से निकल रहे थे कि हमने पकड़ लिया. मुह चुरा कर भागे जा रहे थे पर ढूलन भाई के हाथो में रसगुल्ले कि प्लेट देखकर शायद उनका मन बदल गया .उनके घावों को देखकर ढूलन भाई को भी सहानुभूति हुई . भाई ने पूछा, चाचा ई पट्टी-वट्टी कैसे बंध गयी ? "का बताये ढूलन कलही हम एक बियाव करवावै गये रहन" वो तो ठीक है प इ शादी मा बर्बादी कैसे भई ? " नओ जमाना मा तो नई बात हुइबै करी " वो परेशान से बोले . ढूलन भाई चौंक गये कि नए ज़माने और पंडित जी कि चोंटो का क्या कनेक्शन . ढूलन भाई ,''कैसा नया जमाना चाचा ई नया जमाना ने तुम्हारा क्या बिगाडा है? ऐसा लगा कि बात सुनकर उनका मन कसैला हो
कुछ कही सी, कुछ अनकही.................