ऐ दोस्त फिर से तेरी दोस्ती, की चाह है मुझे, हर पल तेरा इंतजार, तेरा एहसास मुझे है अब रूठती नहीं हूं, नादानी नहीं करती, पर फिर से उन्हीं, नाराजगियों की चाह मुझे है, वो बेवकूफियां भी याद हैं मुझे, उनकी भी फिर से तलबगार हूं मैं, एक रूठ जाउं और, तुम मुझे मनाओ, कितने दिनों से जाने, ये चाह मन में है, कुछ ही दिनों में अचानक, क्यों हुई इतनी बड़ी मैं, कि रही न बचपने की, हकदार भी मैं, क्यों खोई इस दुनिया में, साथ छूटा जो तेरा, तब से सिर्फ तनहाइयों की, हकदार मैं हूं।
कुछ कही सी, कुछ अनकही.................