दो पलो का साथ है , समझते क्यों नहीं? जिन्दगी तो एक ख्वाब है ? तुम समझते ही नहीं ? हर मोड़ पर ये शिकायत , पूरी न हो वो उम्मीदे क्यों ? हर कदम को रोकती , बांधते हो जंजीरे क्यों? मेरे भी तो थोड़े , ख्वाब है , समझते क्यों नहीं ? वादा हर बार मत करो मुझसे , वादे वफ़ा नहीं होते , दिखती है जो हंसी , हर बार ख़ुशी नहीं होती . कई बार ये मुस्कुराहट, आएने-दर्दे-दिल होती है ? तुम समझते ही नहीं ? और क्या शिकायत हो , दुनियादारी कि, जब तुम अपना , हाले दिल समझते ही नहीं ? सारी उम्र साथ क्या निभाओगे ? जब अपने दिल ही मिलते नहीं ?
कुछ कही सी, कुछ अनकही.................