
दो पलो का साथ है ,
समझते क्यों नहीं?
जिन्दगी तो एक ख्वाब है ?
तुम समझते ही नहीं ?
हर मोड़ पर ये शिकायत ,
पूरी न हो वो उम्मीदे क्यों ?
हर कदम को रोकती ,
बांधते हो जंजीरे क्यों?
मेरे भी तो थोड़े ,
ख्वाब है ,
समझते क्यों नहीं ?
वादा हर बार मत करो मुझसे ,
वादे वफ़ा नहीं होते ,
दिखती है जो हंसी ,
हर बार ख़ुशी नहीं होती .
कई बार ये मुस्कुराहट,
आएने-दर्दे-दिल होती है ?
तुम समझते ही नहीं ?
और क्या शिकायत हो ,
दुनियादारी कि,
जब तुम अपना ,
हाले दिल समझते ही नहीं ?
सारी उम्र साथ क्या निभाओगे ?
जब अपने दिल ही मिलते नहीं ?
इसमें प्यार कम अंगार ज्यादा झलक रहा है। शिखा लेखनी में धार तो है फिर समझा क्यों नहीं पाई? खैर, बेहतरीन कविता के लिए धन्यवाद। कुछ खुशखबरी सुनने को मिली है.............तो मुबारक हो।
जवाब देंहटाएंबांधते हो जंजीरे क्यों?
जवाब देंहटाएंमेरे भी तो थोड़े ,
ख्वाब है ,
समझते क्यों नहीं ?
अब कोई ऐसे समझायें तो समझना चाहिए, नासमझी छोड़कर, समझने का प्रयास करने ही समझदारी है..!!
बहुत अच्छे..!!
बहुत बहुत बधाई ।
मार्क्ड दवे ।