सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्यार बार बार होता है


कौन कहता है कि प्यार,
सिर्फ एक बार होता है।
ये तो इक एहसास है जो,
बार-बार होता है।
इसके लिए कोई सरहद कैसी,
ये तो बेख्तियार होता है,
कब कौन कैसे,
भला लगने लगे,
खुद अपना अख्तियार,
कहां होता है?
प्यार में शर्त बंधी हो जो,
तो भला ये प्यार कहां होता है।
शर्तो में बंधने वाले ,
बावफा-बेवफा में अंतर,
कहां बस एक बार होता है,
वफा करना या नहीं करना,
प्यार बस बेहिसाब कर लेना,
बेवफाई में ही हमारी,
जान बस तुम निसार कर लेना।

टिप्पणियाँ

  1. शिखा जी आपने बहुत अच्‍छा लिखा है. प्‍यार को जिन शब्‍दों में पिरोकर आपने उसे एक सूत्र में बांधा है वाकई काबिले तारीफ है.

    जवाब देंहटाएं
  2. एक लम्बे समय के बाद आपने कुछ अपने ब्लॉग पर लिखा है. लेकिन बहुत उम्दा लिखा है. मैं भी आपकी कविताओं का फैन हूं

    जवाब देंहटाएं
  3. खूबसूरत अभिव्यक्ति ..




    कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

    जवाब देंहटाएं
  4. edar kaafi dino se vastata ke karn kuch likh nahi payi. apne blog ko bahut miss kiya maine.


    sarahna ke liye bahut aabhar.word verification htane ki salah dene ke liya dhanayavaad sangeeta ji. phale bhe ek bar ye shikayat aa chuki hai, es bar hata payi hoon.

    जवाब देंहटाएं
  5. प्यार में शर्त बंधी हो तो कहाँ प्यार होता है ...
    बिलकुल सही ...
    खूबसूरत एहसास !

    जवाब देंहटाएं
  6. pyaar ! haan baar baar hota hai, naam alag alag hote hain , per pyaar jo ehsaas hai, wah ek baar panapta hai

    जवाब देंहटाएं
  7. कब कौन कैसे,
    भला लगने लगे,
    खुद अपना अख्तियार,
    कहां होता है?
    प्यार में शर्त बंधी हो जो,
    तो भला ये प्यार कहां होता है।

    वाकई...

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खुबसुरत नज्म ....दिल को छु गयी..शुभकामानाएं।

    जवाब देंहटाएं
  9. सच है प्यार तो एक एहसास है ... इसमें बंधन कैसा .... लाजवाब रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
  10. शिखा जी,
    यक़ीनन बहुत सुन्दर प्यार की परिभाषा पढने को मिली.

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुन्दर प्रेममयी रचना..

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिंदगी तुझे तो मैं भूल ही गई थी

 तो आधी जिंदगी गुजर चुकी है, बाकी भी गुजर ही रही है,लगातार चलती ही जा रही है, पर अभी भी मन बचपन सा ही है, जो जिंदगी पीछे रह गई उसके खट्टे-मीठे पल, छोटी-छाेटी खुशियों की ही याद रह गई है। जो किसी समय लगता था कि बड़ी परेशानियां हैं, उन्हें याद करके बस अब हंसी ही आती है, कितनी बेवकूफ़ और पागल थी मैं कि थोड़ा सा कुछ हुआ और बिफर पड़ी, किसी की बात सुनती भी नहीं थी और खुद ही पहले बोलने लगती थी। किसी ने कुछ कहा नहीं कि मैने उसकी बात से भी बड़े-बड़े अंदाजे लगा लिए और लग गई अपना ही हवा महल बनाने। भले ही कोई कुछ और कहना चाहता हो पर समझना कुछ और, यही तो किशोरावस्था से युवावस्था के बीच की उम्र का असर होता है। बड़े-बड़े सपने, और हवा-हवाई बातें, अगर नही की तो बीस से पच्चीस के बीच की उम्र जी ही नहीं। इन्ही बातों से तो जिंदगी बनती है। आज वही बातें फिर से याद आ रही हैं और बड़े दिनों बाद समय निकालकर ब्लॉग पर आ गई, कभी किसी दोस्त ने कहा थी कि लिखना नहीं छोड़ना, मैं उसकी बात भूल ही गई थी, जिंदगी की आपा-धापी और बदलावों के थपेड़ों के साथ संतुलन बनाना आपको कहां से कहां लाकर खड़ा कर देता है। कोई बात नहीं बहुत द

मौत या मुक्ति

वह हवा में उड़ रहा था, नीचे भी पड़ा हुआ था. उसके चारो ओर नाते-रिश्तों का, जमावडा लगा हुआ था. पर वह था नितांत अकेला. घबराना जायज था सो वह भी खुद को रोक न सका. चीखा-चिल्लाया पर सब बेकार, किसी पर कोई असर नहीं था. पत्नी दहाड़े मार रो रही थी, पुत्रो में चलने की तैयारी के, खर्चे की चर्चा हो रही थी, आज वे अपने पिता पर खूब खर्च करके, पूरा प्यार लुटा देना चाह रहे थे . बीमारी में तंगी का बहाना करने और इलाज के खर्च से बचने के, सारे नखरे पुराने लग रहे थे . उन्हें जल्दी थी तो बस , पिता का शारीर ठिकाने लगाने की. ताकि उन्हें वसीयत पढने को मिले. किसको क्या मिला ये राज खुले. अंतिम यात्रा की तैयारी में गाजे बाजे का बंदोबस्त भी था. आखिर भरा-पूरा परिवार जो छोड़ा था. शमसान पर चिता जलाई गयी, उसे याद आया घी के कनस्टर उदेले गये, इसी एक चम्मच घी के लिये, बड़ी बहु ने क्या नहीं सुनाया था, उसे लगा मरकर वह धन्य हो गया, कुछ घंटों में निर्जीव शरीर खाक हुआ. अब सारे लोग पास की दुकान पर, टूट से पड़े एक साथ. समोसे-गुझिया चलने लगे. कुछ तो इंतजामों की करते थे बुराई, वहीँ कुछ ने तारीफों की झडी लगायी, अब उससे सहन नहीं हुआ , और